आज तृतीया एवं चतुर्थी एक साथ है, इस कारण आज देवी के तीसरे स्वरूप
चंद्रघंटा और चौथे स्वरूप कूष्मांडा की एक साथ उपासना की जानी चाहिए।
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा हैं। उनके इस स्वरूप का ध्यान
हमें अपनी दुर्बलताओं से साहसपूर्वक लड़ते हुए उन पर विजय प्राप्त करने की
शिक्षा देता है। मां का यह स्वरूप दस भुजाओं वाला है, जिनसे वे असुरों से
युद्ध करने जाने के लिए उद्यत हैं। वे हमें दस इंद्रियों को नियंत्रण में
रखते हुए ध्येय की प्राप्ति में लगे रहने की शिक्षा प्रदान करती हैं। उनके
ध्यान से हमें आत्मशोधन करने की शक्ति प्राप्त होती है।
मां के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्रमा सुशोभित है। इसीलिए
इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। मां स्वर्ण के समान संपूर्ण ब्रह्मांड
में आलोकित होती हैं। अपने दसों हाथों में अनेक अस्त्र-शस्त्र लिए हुए मां
सिंह पर आरूढ़ हैं। इनकी चंद्र-ध्वनि से सभी दुष्ट दैत्य व राक्षस आदि
भयभीत होकर भाग जाते हैं।
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