महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है। हमारे समाज में अधिकतर
हिंदू भगवान शिव के उपासक हैं, इसलिए वे महाशिवरात्रि पर्व को काफ़ी उत्साह
के साथ मनाते हैं। इलाहाबाद (प्रयाग) में माघ मेले और कुंभ मेले का समापन महाशिवरात्रि के
स्नान के बाद ही होता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर शिवालयों में महिलाओं
और पुरुषों की काफ़ी भीड़ होती है। लोग शिवलिंग पर बेल की पत्तियाँ चढ़ाते
हैं, गंगाजल से या दूध से स्नान कराते हैं। भक्तगण ‘ओम नम: शिवाय’ का पाठ
करते हैं और चारों तरफ़ ‘हर-हर महादेव’ के जयकारे सुनाई पड़ते हैं। मन्दिरों
के परिसर घंटे-घड़ियालों की आवाज़ से गूंज उठते हैं। अधिकांश लोग शिवजी को
प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं। भगवान शिव के उपासक काँवड़िये गंगाजल
लेकर भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए निकल पड़ते हैं।
महाशिवरात्रि भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण पर्व के रूप में सर्वमान्य है। फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे।
महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है
जो सृष्टि का समापन करती है। महादेव शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो पूरा
ब्रह्माण्ड विखडिंत होने लगता है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की कालरात्रि भी
कहा गया है।महाशिवरात्रि भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण पर्व के रूप में सर्वमान्य है। फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे।
भगवान शिव की वेशभूषा विचित्र मानी जाती है। महादेव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नन्दी बैल की सवारी करते हैं। भूत-प्रेत-निशाचर उनके अनुचर माने जाते हैं। ऐसा वीभत्स रूप धारण करने के उपरांत भी उन्हें मंगलकारी माना जाता है जो अपने भक्त की पल भर की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष भी कहा गया है। भगवान शंकर अपने भक्तों के न सिर्फ़ कष्ट दूर करते हैं बल्कि उन्हें श्री और संपत्ति भी प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि की कथा में उनके इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।
महाशिवरात्रि पर्व को और भी कई रूपों में जाना जाता है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन से ही होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। महादेव को रंग चढ़ाने के बाद ही होलिका का रंग चढ़ना शुरू होता है। बहुत से लोग ईख या बेर भी तब तक नहीं खाते जब तक महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को अर्पित न कर दें। प्रत्येक राज्य में शिव पूजा उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीक़े हैं लेकिन सामान्य रूप से शिव पूजा में भांग-धतूरा-गांजा और बेल ही चढ़ाया जाता है। जहाँ भी ज्योर्तिलिंग हैं, वहाँ पर भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है।
सागर-मंथन के दौरान जब समुद्र से विष उत्पन्न हुआ था तो मानव जाति के कल्याण के लिए महादेव ने विषपान कर लिया था। विष उनके कंठ में आज भी ठहरा हुआ है, इसीलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा गया है। कुछ लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शंकर जी का विवाह पार्वती जी से हुआ था, उनकी बरात निकली थी। वास्तव में महाशिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत धारण करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति भी नियंत्रित होती है। निरीह लोगों के प्रति दयाभाव उपजता है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार है-
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनत् |
चाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं ||
चाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं ||
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