Thursday, 18 October 2012

मां का चौथा स्वरूप : कूष्मांडा


मां दुर्गा के चौथे स्वरूप को कूष्मांडा देवी कहते हैं। उनका सूर्य के समान तेजस्वित स्वरूप व उनकी आठ भुजाएं हमें कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं। उनकी मधुर मुस्कान हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है। मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमें आत्मिक प्रकाश प्रदान करते हुए हमारी प्रज्ञा शक्ति को जाग्रत करके हमारी मेधा को उचित तथा श्रेष्ठ कार्यो में प्रवृत्त करता है।
मान्यता है कि मां अपनी हंसी से संपूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करती हैं और सूर्यमंडल के भीतर निवास करती हैं। सूर्य के समान दैदीप्यमान इनकी कांति व प्रभा है। आठ भुजाएं होने के कारण ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं। मान्यता के अनुसार, उन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है, इसलिए भी ये कूष्मांडा देवी के नाम से विख्यात हैं।

ध्यान मंत्र

                                     "सुरा संपूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

                                       दघानां हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥"

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