मां दुर्गा की द्वितीय शक्ति का नाम ब्रह्मचारिणी है। ब्रह्म में लीन होकर
तप करने के कारण इन महाशक्ति को ब्रह्मचारिणी की संज्ञा मिली है। इसीलिए
मां के इस स्वरूप का ध्यान हमारी शक्तियों को जाग्रत करके स्वयं पर
नियंत्रण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है। हममें कठिनाइयों से लड़ने व
संघर्ष करने की क्षमता विकसित होती है। मां का ज्योतिर्मयी स्वरूप
अनियंत्रित महत्वाकांक्षाओं व दुर्बलताओं का शमन कर सत्प्रवृत्तियों का
अभिवर्धन करता है। हमारे अंदर दिव्यता, श्रेष्ठता तथा आदर्शवादिता की
अभिवृद्धि करता है। उनके दाहिने हाथ में जप की माला तथा बाएं हाथ में कमंडल
रहता है। मान्यता है कि पूर्वजन्म में वे हिमालय की पुत्री थीं। भगवान
शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तप किया। और
तपश्चारिणी कहलाई।
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