फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन
महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव
ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी है।
उसके अनुसार-
भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला और उस पर
ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जक हैं और विष्णु पालक।
दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? उनका यह विवाद जब
बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग
को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया,
परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों देवता निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने
अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं। मैं ही आप दोनों को उत्पन्न किया
है।
तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया
और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। शिवलिंग का आकार दीपक की लौ
की तरह लंबाकार है इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। एक मान्यता यह भी
है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही शिव-पार्वती का विवाह
हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
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