शिवपुराणके अनुसार व्रती पुरुषको महाशिवरात्रि
के दिन प्रातः काल उठकर स्नान-ध्यान आदि कर्म से निवृत्त होने पर मस्तक पर
भस्म का त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष माला धारण कर शिवालय में जाकर
शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं शिव को नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात् उसे
श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-
शिवरात्रिव्रतं ह्यतत् करिष्येऽहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।
महाशिवरात्रि व्रत प्रातः काल से
चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों
में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य
कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और
मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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