माघ शुक्लपक्ष की पंचमी पर बसंत ऋतु के आगमन के पावन अवसर पर शनिवार को प्रयाग में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की सलिला
में डुबकी लगाने के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा। लोगों ने संगम में
डुबकी लगाने के साथ वाग् देवी (मां सरस्वती) का स्मरण कर अज्ञानता को दूर
करने की प्रार्थना की। भोर से शुरू हुआ स्नान-दान का सिलसिला पूरे दिन चलता
रहा। इसमें देश-विदेश से आए
महिला, पुरुष, बच्चे, बुजुर्ग ने स्नान-ध्यान
किया। वहां से लौटने के बाद घरों, प्रतिष्ठानों में मां सरस्वती, पाटी,
ग्रंथ आदि का विधि-विधान से पूजन किया। मंदिरों में बच्चों का नामकरण व
यज्ञोपवीत संस्कार किया गया।
बसंत पंचमी मां सरस्वती के प्राकट्य का पर्व माना जाता है। इसी कारण संगम
में डुबकी लगाने वालों की भीड़ अधिक रही। सुबह से ही धूप खिलने के कारण
लोगों में अधिक उत्साह रहा। हर कोई इस पुण्यबेला में स्नान कर पुण्य कमाने
को आतुर नजर आया। आम श्रद्धालुओं के साथ शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद
सरस्वती, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, स्वामी
अविमुक्तेश्र्वरानंद, स्वामी महेशाश्रम, स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी, आदि
संत-महात्माओं ने पुण्यबेला में संगम में डुबकी लगायी। श्रद्धालुओं ने
स्नान के बाद संतों के शिविर में जाकर प्रवचन सुनकर समय बिताया। वहीं
कल्पवासियों व संतों के शिविर में पूरे दिन भंडारा व भजन-कीर्तन का आयोजन
हुआ। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने वहां प्रसाद ग्रहण करने के साथ धर्म का
ज्ञान प्राप्त किया।
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