मां दुर्गा की छठी शक्ति को कात्यायनी के रूप में जाना जाता है।
कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनके इस स्वरूप का
नाम कात्यायनी पड़ा। कात्यायन ऋषि ने देवी को पुत्री-रूप में पाने के लिए
भगवती की कठोर तपस्या की थी। इसी स्वरूप में मां ने महिषासुर का वध किया
था। सिंह पर आरूढ़ मां के तेजोमय स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर स्वाध्याय,
विद्याध्ययन व तपश्चर्या का तेज प्रदान करता है और निर्मलता, उत्साह,
क्रियाशीलता व उदारता जैसे गुणों को निखारने की प्रेरणा देता है। उनके हाथ
में तलवार हमारी मेधा शक्ति को तीक्ष्ण रखने की प्रेरणा देती है, जिसके
द्वारा हम अपने भीतर के दुर्गुणों का वध कर सकते हैं। उनके स्वरूप का ध्यान
करने से हमें असफलताओं व विपत्तियों से लड़ने की शक्ति हासिल होती है। मां
के चरणों में शरणागत होकर हम अपनी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए लक्ष्य
की प्राप्ति कर लेते हैं।
No comments:
Post a Comment