Tuesday, 10 January 2012

गंगा तीरे शुरू हुआ कल्पवास

पौष पूर्णिमा स्नान के साथ ही गंगा की रेती पर कल्पवास शुरू हो गया। सुबह गंगा स्नान के बाद कल्पवासी अपने शिविर पहुंचे। वहां तीर्थपुरोहितों के आचार्यत्व में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव व पुरखों का स्मरण कर त्याग व तपस्या का व्रत लिया। अब कल्पवासी एक माह तक घर-गृहस्थी, मोह-माया से दूर रहकर धार्मिक कार्यो में लीन रहेंगे। भजन, पूजन, व्रत व संतों की सेवा में अपना समय बिताएंगे। मेला क्षेत्र में कुछ लोग पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा और कुछ मकर संक्रांति से कुंभ संक्रांति तक कल्पवास करते हैं। कल्पवासी एक माह तक सिर्फ एक समय भोजन व दिन में तीन बार गंगा स्नान करेंगे।
कल्पवास ऐसी तपस्या है जिसमें कल्पवासी धर्म के अलावा दूसरे मुद्दों पर चर्चा नहीं करते और न ही मेला क्षेत्र को छोड़कर कहीं बाहर जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति कल्पवास के दौरान कहीं बाहर जाता है तो उनकी तपस्या खंडित हो जाती है। कल्पवासियों ने स्नान के बाद अपने शिविर के बाहर तुलसी का बिरवा लगाकर जौ बोया। इसके बाद इसका विधिवत पूजन किया। कल्पवासी तुलसी के पास प्रतिदिन सुबह-शाम दीपक जलाकर पूजन करेंगे। कल्पवास समाप्त होने के बाद वापस जाते समय इसे प्रसाद स्वरूप लेकर जाएंगे।

             पौष पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं के साथ संत-महात्माओं ने भी स्नान किया। शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने संगम में स्नान किया। वहीं स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ, स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने गंगा के जल में डुबकी लगाई। शंकराचार्य स्वामी महेशाश्रम, स्वामी विमलदेव आश्रम, स्वामी ब्रह्माश्रम ने दंडीबाड़ा के सामने बने घाट पर स्नान करके पूजन किया।

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