सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना
मकर-संक्रांति कहलाता है. संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है.
मान्यता है कि मकर-संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का
सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो
जाती है. उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं.
मकर में सूर्य के प्रवेश और दो माह तक शनि की राशियों में रहने से, पिता-पुत्र में बैर भाव की स्थिति से आमजन पर किसी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थ स्नान, दान और धार्मिक कर्मकांड के उपाय सुझाए हैं।
मकर में सूर्य के प्रवेश और दो माह तक शनि की राशियों में रहने से, पिता-पुत्र में बैर भाव की स्थिति से आमजन पर किसी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थ स्नान, दान और धार्मिक कर्मकांड के उपाय सुझाए हैं।
इस साल 15 को भी मनाई जाएगी संक्रांति?
माघ कृष्ण
पक्ष की पंचमी षष्ठी शनिवार तदनुसार 14 जनवरी, 2012 ई. को संपूर्ण दिन और
रात व्यतीत हो जाने के पश्चात सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो रहा है.
अत: मकर संक्रांति पुण्यकाल 15 जनवरी, 2012 को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त
तक रहेगा. अस्तु खिचड़ी 15 जनवरी, 2012 को भी मनाई जाएगी.
मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता
है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते
है. चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के
नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के
लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी
भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं.
मकर
संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का उपयोग करने और दान के पीछे भी
यही मंशा है। ज्योतिष के अनुसार तेल शनि का और गुड़ सूर्य का भोज्य पदार्थ
है। तिल तेल की जननी है, यही कारण है कि शनि और सूर्य को प्रसन्न करने के
लिए इस दिन लोग तिल-गुड़ के व्यंजनों का सेवन करते हैं
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