Tuesday, 23 October 2012

दशहरा : बुराई पर अच्छाई की जीत


आश्चिन मास का शुक्ल पक्ष अपने साथ शुभ नवरात्रे लेकर आता है. उपवास के समाप्त होते ही दशमी तिथि में दशहरा पूरे भारत वर्ष में बडी धूमधाम से मनाया जाता है. वर्ष 2012 में दशहरा पर्व 24 अक्तुबर, बुधवार के दिन मनाया जायेगा. दशहरे की प्रतिक्षा बच्चे, बूढे और बडे सभी बडी बेसब्री से कर रहे होते है.
भगवान् श्रीराम द्वारा रावण का वध जिस दिन किया गया उसको दशहरा कहा जाता है! इस दिन रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत सिद्ध करते है! लेकिन भारतीय संस्कृति में प्रत्येक त्योहार का आध्यात्मिक अर्थ होता है, इसी को जीवन में लगाना होता है! रावण और कुछ नहीं बल्कि हमारा अहंकार ही है, जब तक ये अहंकार है तब तक हमारे अन्दर अनेक विकार पनपते रहते है ये ही हमारे सारे दुखों की जड़ है, जितना ज्यादा अहंकार होता है उतना ही ज्यादा दुःख होता है, ये अहंकार ही हमें अपने सत चित आनंद स्वरुप से दूर किए रखता है! दशहरे को विजय दशमी के नाम से भी जाना जाता है. दशहरे के पर्व पर बच्चों को दशहरे मेले से मनपसन्द खिलौने मिलते है. वहीं बडों के लिये यह धार्मिक महत्व रखता है. दशहरा पर्व असत्य पर सत्य की विजय का दिन है
मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ने जिस तरह इस दुनिया से पाप और असत्य का खात्मा किया था वह साफ दर्शाता है कि अगर एक आम इंसान भी मन में कुछ करने की ठान ले तो वह बहुत कुछ कर सकता है. नवरात्र के नौ दिनों में मां भगवती की अराधना के बाद दसवें दिन विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है. विजयदशमी को “दशहरे” के नाम से भी जाना जाता है जो भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.
कैसे करें पूजन
विजयदशमी के दिन भगवान श्री राम की पूजा करने का विशेष विधान है. इस दिन सबसे पहले सभी कार्यों से निवृत्त होकर आटे या हल्दी से भगवान श्रीराम का चित्र बनाएं. आटे या गाय के गोबर की 10 लोई बनाकर इसमें नवरात्र में बोये नोरते (जौ) गाड़ दें. चूंकि रावण के 10 सिर 10 महाविद्याओं के प्रतीक हैं, इसलिए यह विधान है. शाम साढ़े पांच से साढ़े सात के मध्य जय और विजय देवी का पूजन करें. एक थाली में “जय विजय” लिखकर प्रार्थना करें.

                                            अथ विजयदशम्यामाश्रि्वने शुक्लपक्षे

                                             दशमुखनिधनाय प्रस्थितो रामचंद्र:.

                                             द्विरदविधुमहाब्जैर्यूथनाथैस्तथाऽन्यै:

                                             कपिभिरपरिमाणैव्र्याप्तभूदिक्खचक्रै:॥

मां का नौवाँ रूप : सिद्धिदात्री


माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। वे सिद्धिदात्री, सिंह वाहिनी, चतुर्भुजा तथा प्रसन्नवदना हैं। मार्कंडेय पुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व- ये आठ सिद्धियां बतलाई गई हैं। इन सभी सिद्धियों को देने वाली सिद्धिदात्री मां हैं। मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमें अज्ञान, तमस, असंतोष आदि से निकालकर स्वाध्याय, उद्यम, उत्साह, क‌र्त्तव्यनिष्ठा की ओर ले जाता है और नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है। हमारी तृष्णाओं व वासनाओं को नियंत्रित करके हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करते हुए हमें स्वयं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देता है। देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने इन्हीं शक्तिस्वरूपा देवी जी की उपासना करके सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं, जिसके प्रभाव से शिव जी का स्वरूप अ‌र्द्धनारीश्वर का हो गया था।

ध्यान मंत्र

                                              "सिद्धगंधर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

                                                सेव्यमाता सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥"

Monday, 22 October 2012

मां का आठवां रूप : महागौरी


मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। मां के इस स्वरूप का ध्यान हमें आस्था, श्रद्धा व विश्वास रूपी श्वेत प्रकाश को अपने जीवन में धारण करते हुए अलौकिक कांति व तेज से सुसंपन्न होने का संदेश प्रदान करता है। मां महागौरी की अवस्था आठ वर्ष की मानी गई है-अष्टवर्षा मवेद गौरी।
इनका वर्ण शंख, चंद्र व कुंद के फूल के समान उज्ज्वल है। इनकी चार भुजाएं हैं। मां वृषभवाहिनी व शांतिस्वरूपा हैं। नारद पंचरात्र के अनुसार, शंकर जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए मां का शरीर धूल-मि˜ी से ढककर मलिन हो गया था। जब शंकर जी ने गंगाजल से इनके शरीर को धोया, तब गौरी जी का शरीर विद्युत के समान गौर हो गया। तब से ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुई। उनका ध्यान जीवनपथ में आने वाले अज्ञानजन्य दु:खों व परिस्थितियों का समूल नाश करके हमें भयमुक्त करता है।

ध्यान मंत्र :

                                       " श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबर धरा शुचि:।

                                           महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा ॥"

Sunday, 21 October 2012

मां का सातवां स्वरूप : कालरात्रि


मां दुर्गा की सातवीं शक्ति का स्वरूप कालरात्रि का है। उनके शरीर का रंग अंधकार की तरह काला है। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह गोल हैं, जिनसे ज्योति निकलती है। इस स्वरूप का ध्यान हमारे जीवन के अंधकार से मुकाबला कर उसे प्रकाश की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करता है। उनके श्वास-प्रश्वास से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं। मां का ध्यान हमारे भीतर के काम, क्रोध, मद लोभ, मोह और अहंकार जैसे दुर्गुणों को भस्म कर देता है। मां गर्दभ (गधे) पर सवार हैं। उनका स्वरूप भले ही भयानक हो, किंतु इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है, क्योंकि ये अच्छे आचरण वालों का शुभ (कल्याण) ही करती हैं। मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर आत्मविश्वास जलाकर हममें कठिनाइयों तथा विपत्तियों से जूझने की क्षमता प्रदान कर हमारा पथ आलोकित करता है।

ध्यान मंत्र  :

                                 "करालरूपा कालाब्जसमाना कृति विग्रहा।

                                   कालरात्रि: शुभं दद्यात् देवी चंडाहासिनी॥"

Saturday, 20 October 2012

मां का छठा स्वरूप : कात्यायनी


मां दुर्गा की छठी शक्ति को कात्यायनी के रूप में जाना जाता है। कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनके इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा। कात्यायन ऋषि ने देवी को पुत्री-रूप में पाने के लिए भगवती की कठोर तपस्या की थी। इसी स्वरूप में मां ने महिषासुर का वध किया था। सिंह पर आरूढ़ मां के तेजोमय स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर स्वाध्याय, विद्याध्ययन व तपश्चर्या का तेज प्रदान करता है और निर्मलता, उत्साह, क्रियाशीलता व उदारता जैसे गुणों को निखारने की प्रेरणा देता है। उनके हाथ में तलवार हमारी मेधा शक्ति को तीक्ष्ण रखने की प्रेरणा देती है, जिसके द्वारा हम अपने भीतर के दुर्गुणों का वध कर सकते हैं। उनके स्वरूप का ध्यान करने से हमें असफलताओं व विपत्तियों से लड़ने की शक्ति हासिल होती है। मां के चरणों में शरणागत होकर हम अपनी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए लक्ष्य की प्राप्ति कर लेते हैं।

ध्यान मंत्र :

                                    "चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहन: |

                                       कात्यायनी शुभं दद्यात् देवी दानवघातिनी॥"